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कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास


खड़ी फसल को बाढ़ निगल गई, डूबा उसका खेत

दाना दाना मुख से छीना, अब खाएं क्या रेत

कौन संभाले बिलखते बच्चे, किस से रखे आस

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास।


बरसो मेघा जम कर बरसो, पूरी कर दो आस

सूखा पड़ा बीज भी जल गया हुई फसल बरबाद

कैसे भरेंगे कर्जा, कैसे पीले हों बिटिया के हाथ

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास।

एक कमाऊ पूत था उसका, चलता था परिवार
एक रोज एक गोली आई, कर गई सीना चाक
देश को उसपर नाज हुआ, दिया पदक एक खास
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास।।

आभार – नवीन पहल – ०४.०७.२०२३ 🙏🙏

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3 Comments

बहुत ही उम्दा और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Punam verma

05-Jul-2023 08:00 AM

Very nice

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Saroj Verma

04-Jul-2023 09:56 PM

Very nice👌👌👌👌

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